इसके पहले वाले लेख (आखिर बेन जॉनसन ही क्यों?) में मैंने 1988 सिओल ओलिंपिक के बहुचर्चित डोपिंग केस का ज़िक्र किया था. इस लेख में मैं एक बार फिर वहीँ से शुरुआत करते हुए तब से लेकर 1996 अटलांटा ओलिंपिक की मेंस ‘100 मीटर’ रेस में हुए मुख्य डोपिंग केसेस की जानकारी दूंगा.
जैसाकि हम जानते हैं कि 1988 सिओल ओलिंपिक की में’स ‘100 मीटर’ रेस में मुकाबला आठ बार ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीत चुके अमेरिका के स्प्रिंटर कार्ल लुइस, 1984 लॉस एंजेल्स में दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए कैनेडियन स्प्रिंटर बेन जॉनसन, 1986 यूरोपियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए ब्रिटिश स्प्रिंटर लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी और 1984 ओलंपिक्स की 4×100 मीटर रिले रेस के गोल्ड मेडल विजेता कैल्विन स्मिथ के बीच हुआ था. इस रेस में बेन जॉनसन के डोपिंग में पकड़े जाने के बाद उसका गोल्ड मेडल अमेरिका के स्प्रिंटर कार्ल लुइस, सिल्वर मेडल ब्रिटिश स्प्रिंटर लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी को और ब्रॉन्ज़ मेडल अमेरिका के कैल्विन स्मिथ को दे दिया गया था. अब यहाँ जानने की बात ये है कि कैल्विन स्मिथ को छोड़कर दोनों स्प्रिंटर कार्ल लुइस और लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी के डोप टेस्ट में फेल होने के बावज़ूद उन्हें गोल्ड और सिल्वर मेडल्स दिए गए. कार्ल लुइस के यूरीन में तीन प्रतिबंधित दवाएं, ‘एफ़िडिरिन’, ‘स्यूडोएफ़िडिरिन’ और ‘फेनीलप्रोपेनोलामिन’ पायी गयीं थीं. लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी ने 1992 बार्सिलोना ओलिंपिक में में’स ‘100 मीटर’ रेस में गोल्ड जीता और वो फिर से डोपिंग में फेल हुआ. रही बात कैल्विन स्मिथ की तो उसने रेस के काफ़ी पहले ड्रग्स लेना छोड़ दिया था जिसकी वज़ह से वो डोप टेस्ट में बच गया. कार्ल लुइस के बारे में एक बात ये भी जननी ज़रूरी है कि इसी ओलिंपिक (1988) से मात्र दो महीने पहले, ट्रायल्स के दौरान वो तीन बार डोप टेस्ट में फेल हुआ था और उस समय के अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार उसे ओलिंपिक में भाग ही नहीं लेने देना चाहिए था. ऐसे खिलाड़ी को अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी ने ‘स्पोर्ट्समैन ऑफ़ द सेंचुरी’ की उपाधि से नवाज़ा और अमेरिकन स्पोर्ट्स मैगज़ीन ने उसे ‘ओलिंपियन ऑफ़ द सेंचुरी की उपाधि दी. आज लेविस, हॉउस्टन यूनिवर्सिटी में बतौर कोच काम कर रहा है और भावी खिलाड़ियों को दौड़ने की तकनीक के साथ-साथ डोपिंग के गुर भी सिखा रहा होगा. यहाँ एक और जानकारी ये भी है कि 1988 की उसी ‘100 मीटर’ रेस में चौथे स्थान पर आने वाले अमेरिकन स्प्रिंटर का नाम डेनिस मिशेल था और बाद में वो भी डोप टेस्ट में फेल हुआ.
1988 सिओल ओलिंपिक के बाद हुए 1992 बार्सिलोना ओलिंपिक की ‘100 मीटर’ रेस में गोल्ड मैडल ब्रिटिश स्प्रिंटर लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी ने जीता लेकिन डोप टेस्ट में फेल होने के बाद उससे मेडल वापस ले लिया गया. 1992 बार्सिलोना ओलिंपिक के इस प्रकरण के बाद अब मैं बात करूँगा 1996 अटलांटा ओलिंपिक के बारे में. ये वो दौर था जब खिलाड़ी स्पोर्ट्स वैज्ञानिकों की मदद से डोपिंग के नए-नए नुस्खे आज़मा रहे थे. उस समय तक कई ऐसी शक्तिवर्धक दवाएं इजाद हो चुंकी थी जो तत्कालीन प्रतिबंधित दवाओं की सूची में न तो शामिल थीं और न उनको पकड़ने का कोई तरीका ही था. कई खिलाड़ी इन खामियों का फायदा उठाते रहे और जीवन भर ‘क्लीन’ बने रहे. इनमें से एक नाम जमैका में पैदा हुए कैनेडियन स्प्रिंटर डोनोवन बेली का है जिसने 1996 अटलांटा ओलिंपिक की मेंस ‘100 मीटर’ रेस में 9.84 सेकण्ड्स का नया रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड मैडल जीता और डोप टेस्ट में बचता रहा. इसी तरह कुछ ऐसे बड़े खिलाड़ी भी थे जो शक्तिवर्धक दवाओं को सही तरह से संचालित न कर सके और डोपिंग में फेल होने की वजह से या तो उन्हें अपना मेडल खोना पड़ा या उन्हें प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया. इनमें से कुछ नाम स्पेनिश वॉकर डेनियल प्लाजा, जमैका में पैदा हुई अमेरिकन फीमेल स्प्रिंटर सैंड्रा पैट्रिक और इटली की हाई जम्पर एंटोनेला बेविलास्क्वा हैं.
यहाँ ये भी जानना बहुत ज़रूरी है कि ऐसा नहीं है कि प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग सिर्फ 100 मीटर रेस या एथलेटिक्स और वेट लिफ्टिंग तक ही सीमित है, इन दवाओं का प्रयोग दुनिया के सभी खेलों में किया जाता रहा है. यहाँ तक कि इनका प्रयोग साइकिलिंग, बास्केटबॉल, बेसबॉल, वॉलीबाल, बैडमिंटन, फेंसिंग, फुटबॉल, क्रिकेट, हॉकी, टेनिस, स्विमिंग, तीरंदाज़ी, शूटिंग, बिलियर्ड्स, शतरंज और यहाँ तक कि घुड़सवारी में भी होता है जहाँ घुड़सवार के साथ-साथ घोड़ों को भी शक्तिवर्धक प्रतिबंधित दवाएं दी जाती हैं और इन दवाओं में सिर्फ स्टेरॉएड्स’ का ही प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि इसमें कई अलग-अलग श्रेणी की दवाओं का प्रयोग होता है जिनमें ‘स्टिमुलैंट्स’, ‘नारकोटिक्स’, ‘पेप्टाइड होर्मोनेस’ ‘डाईयुरेटिक्स’, ‘ग्लुकोकोर्टिकॉइड्स’, ‘एलकोहॉल’, ‘कोकीन’, ‘लेसिक्स’, और इनके न जाने कितने वैरिएंट्स का प्रयोग में लाये जाते हैं. इसके अलावा कई ऐसे तरीके हैं जिनसे बहुत आसानी से डोप टेस्ट को धोखा दिया जा सकता है और ये पिछले कई सालों से निरंतर चलता चला आ रहा है. इन प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग सिर्फ विकसित देशों के खिलाड़ी ही करते, इन्हे दुनिया के सभी छोटे बड़े देशों के खिलाड़ी इस्तेमाल करते हैं. ऐसे खिलाड़ियों की गिनती हज़ारों में है जिसे इस तरह के लेखों में प्रकाशित करना संभव नहीं है. अगर पिछले सिर्फ पाँच सालों की बात की जाए तो मैंने अपने सभी सोशल एकाउंट्स, ‘फेसबुक’, ‘लिंकडिन’, ‘ट्वीटेर’ और ‘इंस्टाग्रम’ पर अभी तक करीब 2000 डोपिंग केसेस की जानकारी दी है. ऐसा तब है जब दुनिया की कोई भी एंटी डोपिंग एजेंसी सभी खिलाड़ियों पर किये गए डोपिंग टेस्ट्स का विस्तृत विवरण नहीं देती. इन लेखों का मुख्य उद्देश्य आप तक न केवल ‘डोपिंग’ के रहस्यों की जानकारी देना है बल्कि इसके पीछे एक ये भी सन्देश है कि डोपिंग में होने वाली तमाम अनियमितताओं की वज़ह से हमारे कई प्रतिभावान खिलाड़ी ओलिंपिक में मेडल्स की रेस में बहुत पीछे छूट गए. ये वो खिलाडी थे जो देश के लिए मेडल्स जीत कर आने वाले युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन सकते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होना चाहिए. मैं मानता हूँ कि हमारे देश के भी कई खिलाड़ी डोपिंग में लिप्त हैं लेकिन तमाम सुविधाओं के अभावों और स्पोर्ट्स साइंस में पीछे होने के कारण उन्हें मजबूरन इन खतरनाक दवाओं का सेवन करना पड़ता है. वे इन दवाओं की सही जानकारी न होने के कारण डोप टेस्ट में फेल हो जाते हैं और उनके करियर पर हमेशा के लिए ग्रहण लग जाता है. मैं इन दवाओं के प्रयोग के सख्त खिलाफ हूँ लेकिन अब हमें ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे दूसरे देशों के खिलाड़ियों पर भी नकेल कसी जा सके. अपने आने वाले लेखों में मैं कुछ ऐसे टेस्ट्स का भी ज़िक्र करूँगा जिनके प्रयोग में लाने पर सभी दोषी खिलाड़ियों को पकड़ना बहुत आसान हो जाएगा और तब, जब हमारा मुकाबला मशीनों से नहीं बल्कि इंसानों से होगा, ओलिंपिक में हमारे मेडल्स की गिनती कहीं अधिक हो जाएगी.
अपने अगले लेख में मैं 1996 ओलिंपिक के बाद से हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो ओलिंपिक तक होने वाली सभी में’स ‘100 मीटर’ की दौड़ों में हुए डोपिंग केसेस की रोचक जानकारी दूंगा जिसमें उसैन बोल्ट के ज़िक्र के साथ-साथ डोपिंग से जुड़े कुछ और रहस्यों को भी उजागर करने की कोशिश करूँगा. अगर आप मेरे लेख पसंद करते हैं तो इन्हें शेयर कर ज़यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाएं और देशहित में मेरी इस छोटी सी कोशिश को सार्थक बनाने में मदद करें.
धन्यवाद!
डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
लखनऊ
Great work for althelte
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Amazing facts
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एक और जबरदस्त लेख। यह तो बारूद के पहाड़ में माचिस की जलती हुई तीली की तरह है। ऐसे रहस्योद्घाटन से अनेक गड़बड़-घोटालों की बखिया धीरे-धीरे उधड़ रही है। यह साबित होता है कि हर ओलंपिक में पदकों की झड़ी लगाने वाले देश अदृश्य शक्ति के बल पर खेल रहे हैं, जिसकी वजह से प्रतिभाओं से भरे भारत जैसे देशों को कुछ मुट्ठी भर पदकों से ही संतोष करना पड़ता है। ओलंपिक्स में ड्रग्स के जाल को खत्म करना जरूरी है वरना इन्हें कभी निष्पक्ष नहीं माना जाएगा।
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It’s true sir
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सही कहा। आंख खोलने वाले बेहतरीन ब्लाग के लिए बधाई
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The article is very nice and has a great deal of information and research. At the same time, it reveals about the High level Game that is being played by the famous athletes and powerful federations. Try to write in English. This surely deserves international attention and appraisal. Still a very commendable effort, I would opine. 👌👌👍👍👍
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Well said!!
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The menace of doping is rampant and much needs to be done .
Article like this spreads the awareness, among public at large ,about the role models who have failed us.
The crisp communication coupled with facts makes reading your article a joy.
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डॉक्टर साब, अच्छा आलेख। काफी मेहनत और शोध के बाद तैयार किया आर्टिकल। जो हमारे युवा एथलीटों जागरूक और सतर्क भी करेगा। आने वाले खतरों से। आप ऐसे ही निरंतर लिखते रहिए।
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Great job….
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Very thought-provoking article sir! Like reading your articles a lot.
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Great work sir 👏 👍
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Great work sir ji
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As per Saranjeet Singh’s experience in Doping, he has done a very great job in writing, posting and blogging articles on Doping.
Keep it up the good job.
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It is always quite fascinating to read your blogs as content is so deep and fact oriented.
It gives so much inspiration and know how about what is happening in the sports world. Doping and all other drug related complications we get to know with case studies present in the world .
Good job doctor.
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Very informative and provides awareness among the sports authorities and players..really an eye opener
आदरणीय डॉ सिंह जी,
आपने खिलाड़ियों के संदर्भ में जो विस्तृत बातें लिखी है डॉपिंग के सिलसिले में अति महत्वपूर्ण है । निश्चित तौर पर यह आज हमारे सपोर्ट जगत की बड़ी समस्या खिलाड़ियों के बीच में है । जिससे समय रहते हुए इससे हमारे खिलाड़ियों को छुटकारा पाना चाहिए और खिलाड़ियों के सही और प्राकृतिक तरीके से जो उनके अंदर टैलेंट है उसके अनुसार उनको अपने खेल प्रतिस्पर्धा में भाग लेना चाहिए। किसी ऐसी दवा के सेवन का सहारा बिल्कुल नहीं लेना चाहिए जो मेडिसिन शरीर के उत्तेजना बढ़ाने के लिए लिया जाता है । वह शरीर के मांस पेशियों के लिए और लंबे समय तक जीवन को चुस्त-दुरुस्त स्वस्थ बनाए रखने में बहुत घातक परिणाम देखने को मिलते हैं।
इसलिए मैं अपने सभी खिलाड़ियों से यह विनम्र अनुरोध करता हूं कि डॉक्टर सरबजीत सिंह जी जो स्पोर्ट हेल्थ के जाने-माने विशेषज्ञ हैं उन्होंने जो एडवाइस किया है उसको आप सभी जरूर उसका पालन करें और अपने खेल प्रतियोगिता में सही तरीके से प्रतिस्पर्धा में भाग कर अपना समाज और देश का नाम रोशन करें ।
इन्हीं भावनाओं के साथ मैं इस शानदार जानदार धारदार ले के लिए डॉक्टर को दिल की गहराई से साधुवाद देता हूं आभार सहित डॉक्टर देवेंद्र प्रताप सिंह प्रवक्ता उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी
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Ur truly great sir the way ur serving nation by ur knowledge… thanks
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Helpful
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Doping is the biggest issue in sports since long. You have taken it up in a very systematic and scientific manner. Hope it will bring some awareness and meaningful results.
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Dear Brother,
You are honest, knowledgeable and very enthusiastic man. You have always been telling a lot of truth about the disease of making a name in the world of sports by taking drugs in the top label, and you are doing it constantly, it is a matter of your courage that you are so suppressed but still You keep bringing out the truth. This specialty will make your name in the world one day …. Of course ….. our very best wishes are with you. Truth always speaks head-to-head. No one can beat him. Truth is always won in every game, if not today then tomorrow.
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The facts and knowledge passed on with your article will play a vital role for generations to come , the efforts and work pit is really incredible . Thanks sir for providing us with information
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अच्छा और उपयोगी लेख कह सकते हैं
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Dear Dr. Saranjeet Singh Ji,
Your articles have great deal of knowledge and show a wrath of research, which you have done in your carrier. “ऐसे खिलाड़ी को अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी ने ‘स्पोर्ट्समैन ऑफ़ द सेंचुरी’ की उपाधि से नवाज़ा और अमेरिकन स्पोर्ट्स मैगज़ीन ने उसे ‘ओलिंपियन ऑफ़ द सेंचुरी की उपाधि दी. ” your comment about Carl Lewis said everything BLACK & WHITE of drugs use. Even current world also We have Simone Biles and so many others name, who are always on suspicious note.
Great to read your article. Please keep pen about this DARK SPACE of sports world.
Rgds,
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very nice and informative article..
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Dr.Saranjeet you are bringing commendable solid stuff about sports and its darksides.Thank you so much for sharing precious and original knowledge.
Indian government must work on it so that fair competitions could be played in international and national games and earn more medals .
अमुल्य जानकारी को अन्ग्रेजी मे भी blog करें.
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