अपने पिछले लेख (सिओल से अटलांटा: डोपिंग रहस्य) में मैनें इन ओलंपिक्स के मेंस 100 मीटर रेस में हुए डोपिंग केसेस के बारे में बताया था. प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग सभी तरह की रेसों, 100 मीटर (मेन/वीमेन), 200 मीटर (मेन/वीमेन), 400 मीटर (मेन/वीमेन), 800 मीटर (मेन/वीमेन), 1500 मीटर (मेन/वीमेन), 5000 मीटर (मेन/वीमेन), 10000 मीटर (मेन/वीमेन), 4×100 मीटर रिले (मेन/वीमेन), 110 मीटर हर्डल्स (मेन) में शुरू से ही हो रहा है. दरअसल इन दवाओं के दुरुपयोग से कोई भी खेल या देश कभी भी अछूता नहीं रहा है. सभी देशों के कोच और वैज्ञानिक इन दवाओं के अलग-अलग ‘कॉकटेल’ का प्रयोग अपने खिलाड़ियों पर करते आ रहे हैं जिससे वो डोप टेस्ट्स में फेल हुए बिना ज़्यादा से ज़्यादा मेडल्स जीत सकें. मेंस 100 मीटर की रेस शुरू से ही ओलिंपिक की एक बहुत महत्वपूर्ण रेस रही है. सभी खेलप्रेमियों की आँखें हर ओलिंपिक में दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले इंसान को देखने और उसको जानने में उत्सुक रहती हैं. इसीलिए मेंस 100 मीटर रेस में जीतने वाले खिलाड़ी को व्यावसायिक रूप से कई खेलों की तुलना में बहुत ज़्यादा फ़ायदा होता है और यही कारण है कि इस रेस में हुए डोपिंग केसेस की चर्चा भी सबसे ज़्यादा होती है.
अब बात करते हैं 1996 अटलांटा के बाद होने वाले 2000 सिडनी ओलिंपिक के बारे में. इस ओलिंपिक को ‘गेम्स ऑफ़ द न्यू मिलेनियम’ के नाम से भी जाना जाता है. इस ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस में गोल्ड मैडल अमेरिकन स्प्रिंटर मॉरिस ग्रीन ने 9.87 सेकंड में पूरा करके जीता था. इसमें सिल्वर मेडल, कैरिबियाई सागर में स्थित त्रिनिदाद और टोबैगो गणराज्य के स्प्रिंटर आटो बोल्डेन ने और ब्रॉन्ज़ मैडल बारबाडोस के स्प्रिंटर ओबा थॉम्पसन ने जीता था. 2008 में इस रेस के विजेता मॉरिस ग्रीन का नाम प्रतिबंधित दवाएं के प्रयोग करने में आया जिसे बाद में उसने सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया. लेकिन उस समय की एंटीडोपिंग एजेंसीज के लचर रवैयों के चलते वो सभी डोप टेस्ट्स पास करता गया और कई प्रतियोगिताओं में अनुचित तरीके से मेडल्स जीतता गया. इस रेस में सिल्वर मेडल जीतने वाला स्प्रिंटर आटो बोल्डेन खुद तमाम एंटीडोपिंग कैंपेन करने के बावज़ूद 2001 में डोपिंग में पकड़ा गया. इसी रेस में ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने वाले बारबाडोस के स्प्रिंटर ओबा थॉम्पसन पर भी डोपिंग के आरोप लगते रहे और एंटीडोपिंग एजेंसीज की ख़ामिओं की वज़ह से वो भी बचता रहा. ओबा थॉम्पसन उसी ओलिंपिक में तीन गोल्ड और दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने वाली अमेरिकन एथलीट मरिओन जोंस के पति हैं. मरिओन जोंस ने 2007 में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि 2000 सिडनी ओलिंपिक के दौरान उसने शक्तिवर्धक प्रतिबंधित दवा “स्टेरॉयड’ का प्रयोग किया था जिसके बाद, उसके मेडल्स छीन लिए गए और उसे छह महीने की जेल भी हुई. अब यहाँ एक प्रश्न ये भी उठता है कि अगर 2000 सिडनी ओलिंपिक के दौरान उसका डोप टेस्ट हुआ था तो वो कैसे बच गयी? उस समय और ऐसे कितने खिलाड़ी रहे होंगे जिन्होंने एंटीडोपिंग एजेंसीज की ख़ामिओं का फायदा उठा कर अलग-अलग खेलों में रिकार्ड्स बनाये होंगे और अपने-अपने देशों के लिए मेडल्स जीते होंगे?
2000 सिडनी की इसी मेंस 100 मीटर रेस में चौथवें पर आने वाला एफ्रो -कॅरीबीयन डिसेंट का ब्रिटिश स्प्रिंटर ड्वेन चैम्बर्स था. उसे उस समय यूरोप का सबसे तेज़ स्प्रिंटर कहा जाता था लेकिन 2003 में वो डोप टेस्ट में पकड़ा गया और उस पर दो साल का बैन लगाया गया. उसने उस समय की बहुचर्चित ड्रग टेट्राह्यड्रोजेस्ट्रिनोन (टी एच जी) का सेवन किया था. ये एक ‘डिज़ाइनर स्टेरॉयड’ था जिसे उस समय के कई प्रतिष्ठित खिलाड़ी सालों से इस्तेमाल कर रहे थे. वर्ल्ड एंटीडोपिंग एजेंसी (वाडा) इस ड्रग को पकड़ने में नाकाम थी, खिलाड़ी खुलकर इस ड्रग का प्रयोग करते थे, आसानी से डोप टेस्ट से बच जाते थे, रिकार्ड्स बनाते थे और अपने देश के लिए मेडल्स जीतते थे. इसीलिए इस ड्रग को ‘द क्लियर’ के नाम से भी जाना जाता था. इसी रेस में पांचवें स्थान पर आने वाले अमेरिकन स्प्रिंटर का नाम जॉन ड्रम्मोन्ड, छठे स्थान पर आने वाले ब्रिटिश स्प्रिंटर का नाम डैरेन कैम्पबेल और सातवें स्थान पर आने वाले वेस्ट इंडीज के एक आइलैंड, फेडरेशन ऑफ़ सेंट क्रिस्टोफर एंड नेविस के स्प्रिंटर का नाम किम कॉलिंस था. ये सभी आगामी वर्षों में डोपिंग में या तो सीधे तौर पर लिप्त पाए गए या उन पर इसके आरोप लगते रहे. इनमें से जॉन ड्रम्मोन्ड को तो डोपिंग में फेल होने पर आठ साल का बैन तक लगा.
2000 सिडनी के बाद 2004 एथेंस ओलिंपिक आते-आते स्पोर्ट्स साइंस और भी उन्नत हो चुकी थी. इस ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस में गोल्ड मैडल अमेरिकन स्प्रिंटर जस्टिन गैटलिन, सिल्वर मेडल नाइजीरिया में पैदा हुए पुर्तगाली स्प्रिंटर फ्रांसिस औबिकवेलु और ब्रॉन्ज़ मेडल अमेरिकन स्प्रिंटर मॉरिस ग्रीन ने जीता था. बाईस वर्षीय जस्टिन गैटलिन ने ये रेस 9.85 सेकण्ड्स में जीती जो उस समय के ओलिंपिक रिकार्ड्स से मात्र एक सेकंड के सौवें सेकंड से ज़्यादा था. अब यहाँ ये जानना ज़रूरी है की जस्टिन गैटलिन 2001 में पहले ही डोपिंग में फेल हो चुका था. उसने ‘एम्फेटामिन्स’ नाम की प्रतिबंधित दवा का प्रयोग किया था जिसके बाद उस पर दो साल का बैन लगा. इसके बाद 2006 में उसके शरीर में बहुत अधिक मात्रा में ‘टेस्टोस्टेरोन’ पाया गया और वो एक बार फिर डोप टेस्ट में फेल हुआ. इस बार उस पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा जिसे बाद में आठ साल में बदल दिया गया. 2007 में उसने एक बार फिर अपील की और उसके प्रतिबन्ध को चार साल और कम कर दिया गया. इसके बाद उसने 2012 लन्दन ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस में ब्रॉन्ज़ मेडल और 2016 रिओ ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीता. और फिर पैंतीस वर्ष की उम्र में, 2017 में लन्दन में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स के दौरान उसने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी आठ बार ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाले वाले जमैकन स्प्रिंटर उसेन बोल्ट को हराया. इस समय तक आते-आते स्पोर्ट्स साइंस कहीं आगे निकल चुकी थी, खिलाड़ी इस तरह की उन्नत दवाओं और तकनीक का प्रयोग कर रहे थे कि दुनिया की कोई भी एंटीडोपिंग एजेंसी उन्हें पकड़ने में असमर्थ थी. यही वजह थी कि इस जीत पर भी जस्टिन गैटलिन पर डोपिंग के आरोप लगे लेकिन इस बार वो आसानी से बच निकला. अपने आने वाले लेखो में मैं इन खतरनाक दवाओं और डोपिंड से बचने की अतिविकसित तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी दूंगा और ये भी बताऊंगा कि एक स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट की मदद से डोप टेस्ट को चकमा देना कोई बहुत बड़ी बात कभी नहीं रही है. ये कुप्रथा आज भी निरंतर चलती आ रही है जिसका ख़मयाज़ा आज भी हमारे खिलाड़ियों को चुकाना पड़ रहा है. इसके अलावा मैं कुछ ऐसे टेस्ट्स के बारे में भी बात करूँगा जिन्हे अगर वाडा से मान्यता मिल जाये तो दोषी खिलाड़िओं को पकड़ना आसान हो सकता है.
अब अगर एक बार फिर 2004 एथेंस ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस की बात की जाये तो इसमें सिल्वर मेडल जीतने वाले स्प्रिंटर फ्रांसिस औबिकवेलु पर भी एक स्पेनिश एथलेटिक्स जर्नल द्वारा डोपिंग के आरोप लगाए गए. इसी ओलिंपिक में ब्रॉन्ज़ मेडल वाले अमेरिकन स्प्रिंटर मॉरिस ग्रीन के डोपिंग केस का ज़िक्र हम पहले ही इसी लेख में कर चुके हैं. अगले लेख में मैं एथेंस के बाद के ओलंपिक्स में हुए डोपिंग केसेस के बारे में जानकारी दूंगा. अगर आप मेरे लेख पसंद करते हैं तो इन्हें शेयर कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाएं और देशहित में मेरी इस छोटी सी कोशिश को सार्थक बनाने में मदद करें.
धन्यवाद!
डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
लखनऊ
Sir, I salute to your depth knowledge of doping. One day you will be on the top of the world & your continuous hard labour will be recognized by world. All the best. Keep it up. 🙏🙏🙏🙏
Thanks for appreciating my work. your comments are my strength.
हम जैसे आम लोगों के लिए आपके लेख आँख खोलने वाले होते हैं सर। ऐसी बातें शायद हम लोग सोच भी नही पाते और आप उनका इतना बारीकी से निरीक्षण करते हैं। लाजवाब!
आशा करती हूं की आप ऐसे ही कई रहस्यों को उजागर करते रहेंगे और ये जो रोल मॉडल्स हैं, इनका पर्दाफाश करते रहेंगे।
धन्यवाद।
thanks for reading and kind reply.
Well written article…
Thank you.
SHAME on these athletes and their coaches , that they prefer dope to hard work and RESPECT to you for having the COURAGE to reveal their misdoing !!
Thank you for your comments saurabh.
Great work….really injustice with honest and practicing hard players.
ये तो खेलों का जबरदस्त घोटाळा है.
Thank you.