अपने पिछले लेख (अटलांटा से एथेंस: डोपिंग रहस्य) में मैंने उल्लेख किया था कि इन दोनों ओलंपिक्स में किस तरह छोटे-बड़े सभी देशों के खिलाड़ी डोपिंग में लिप्त थे. वो किस तरह नयी-नयी और ख़तरनाक शक्तिवर्धक दवाओं और तकनीकों का प्रयोग कर वर्ल्ड एन्टीडोपिंग एजेंसी (वाडा) को चकमा दे रहे थे और अपने-अपने देशों के लिए मेडल्स जीत रहे थे. ये सिलसिला हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो ओलंपिक्स तक बदस्तूर जारी रहा. अपने इस लेख में मैं 2004 एथेंस ओलिंपिक से लेकर 2020 टोक्यो ओलिंपिक तक की मेंस 100 मीटर रेस में होने वाले डोपिंग केसेस की जानकारी दूंगा. जैसा कि हम जानते हैं कि 2008 बीजिंग, 2012 लन्दन और 2016 रिओ ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेसों में गोल्ड मैडल जमैकन स्प्रिंटर उसेन बोल्ट ने जीता था. उसेन बोल्ट डोपिंग का दोषी था या नहीं इस पर मैं अपने अगले लेख में बात करूँगा.
2008 आते-आते शक्तिवर्धक दवाओं पर बहुत शोध हो चुके थे जिसके चलते किसी भी एंटी डोपिंग एजेंसी का दोषी खिलाड़िओं को पकड़ना बहुत मुश्किल हो चुका था. इसका बहुत बड़ा उदाहरण 2008 बीजिंग ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले त्रिनिदाद और टोबैगो गणराज्य के स्प्रिंटर रिचर्ड थॉम्पसन से मिलता है. रिचर्ड थॉम्पसन का नाम उस समय के दस सबसे तेज़ दौड़ने वाले स्प्रिंटर्स में शामिल था. रिचर्ड थॉम्पसन को 2017 में अन्तर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति ने डोपिंग का दोषी पाया. गौरतलब है कि ये निर्णय उसे मेडल मिलने के नौ साल बाद उसके 2008 बीजिंग ओलिंपिक में लिए गए डोप सैम्पल्स की पुनः जांच करने पर लिया गया था. ये इस तरह का पहला केस नहीं था जिसमें किसी खिलाड़ी को उसके डोप सैम्पल्स लेने के इतने सालों बाद दोषी पाया गया हो. अपने आने वाले लेखों में मैं इस तरह के कई केसेस की जानकारी दूंगा जिसमें ओलिंपिक या किसी दूसरी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतने के कई सालों बाद कुछ दोषियों को पकड़ा जा सका. जबकि कुछ हमेशा के लिए बच गए. वाडा की इस ख़ामी से ज़ाहिर होता है कि न जाने ऐसे कितने खिलाड़ी रहे होंगे जिन्होंने इसका फायदा उठाकर रिकार्ड्स बनाये होंगे और अपने देश के लिए मेडल्स जीते होंगें. ऐसे कई खिलाड़िओं को आज भी ‘क्लीन’ समझा जाता है. इस तरह का एक खिलाड़ी 2008 की इसी रेस में ब्रॉन्ज़ मैडल जीतने वाला अमेरिकन स्प्रिंटर वॉल्टर डिक्स था. 100 मीटर रेस में वॉल्टर डिक्स की बेस्ट टाइमिंग 9.88 सेकण्ड्स थी. इतनी बेहतरीन टाइमिंग को लेकर उस पर डोपिंग के आरोप लगते रहे लेकिन वो डोप टेस्ट को चकमा देने में कामयाब रहा.
2012 लन्दन ओलिंपिक में मेंस 100 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जमैकन स्प्रिंटर योहान ब्लेक ने जीता था. योहान ब्लेक की बेस्ट टाइमिंग 9.69 सेकण्ड्स थी जो उसेन बोल्ट के बाद (9.58 सेकण्ड्स) आज तक की सबसे अच्छी टाइमिंग थी. यहाँ ये जानना ज़रूरी है कि इस ओलिंपिक से पहले, 2009 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स के दौरान योहान ब्लेक डोप टेस्ट में फेल हो चुका था. उसने प्रतिबंधित दवा ‘4-मिथाइल -2-हेक्सानमीन’ का प्रयोग किया था जो ‘स्टीमुलेंट’ का एक विकसित रूप है. 2012 लन्दन ओलिंपिक में ब्रॉन्ज़ मेडल अमेरिकन स्प्रिंटर जस्टिन गैटलिन ने जीता था जिसके डोपिंग इतिहास के बारे में मैं अपने पिछले लेख में बता चुका हूँ. इसी रेस में चौथे स्थान पर आने वाले वाला अमेरिकन स्प्रिंटर रयान बेली और बाकी के स्प्रिंटर्स जैसे डच स्प्रिंटर चुराण्डी मार्टिना और जमैकन स्प्रिंटर असाफा पॉवेल भी डोपिंग में लिप्त पाए गए. असाफा पॉवेल ने 2013 की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप्स के दौरान प्रतिबंधित दवा ‘ऑक्सिलोफरीन’ का सेवन किया जो कि एक ‘स्टीमुलेंट’ है.
2012 लन्दन ओलिंपिक के बाद 2016 रिओ ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर रेस का गोल्ड मैडल उसेन बोल्ट, सिल्वर मैडल जस्टिन गैटलिन और ब्रॉन्ज़ मैडल कनेडियन स्प्रिंटर आन्द्रे दी ग्रास ने जीता था. 2015 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप्स के दौरान आन्द्रे दी ग्रास ने उसेन बोल्ट को करीब-करीब पीछे छोड़ दिया था. उसके इस प्रदर्शन के बाद उस पर भी डोपिंग के आरोप लगे हालाँकि वो डोप टेस्ट में बच गया. हाल ही में हुए 2020 टोक्यो ओलिंपिक में आन्द्रे दी ग्रास ने एक बार फिर कनाडा के लिए ब्रॉन्ज़ मैडल जीता. इस ओलिंपिक में गोल्ड मेडल इटली के स्प्रिंटर मॉर्केल जैकब्स ने जीता था. ये इटली का पहला स्प्रिंटर था जिसने ओलिंपिक में मेंस 100 मीटर रेस के फाइनल के लिए क्वालीफाई किया और ये रेस भी जीती. मॉर्केल जैकब्स ने ये रेस 9.80 सेकण्ड्स में जीती जबकि 2019 में 100 मीटर रेस में उसकी बेस्ट टाइमिंग 10.00 सेकेंड्स से भी ऊपर थी. उसकी टाइमिंग में इतनी जल्दी और इतने अधिक सुधार के लिए उस पर भी डोपिंग के आरोप लगे. हो सकता है कि आने वाले दिनों में जब एंटीडोपिंग साइंस और विकसित हो जाये तो वो भी डोपिंग का दोषी पाया जाये जैसा पिछले कुछ सालों में सैकड़ों खिलाड़ियों के साथ हो चुका है. इसी रेस में सिल्वर मेडल अमेरिकन स्प्रिंटर फ्रेड करले ने 9.84 सेकण्ड्स से जीता था. डोप टेस्ट में पास होने के बावज़ूद उस पर भी डोपिंग के लिए उंगलियाँ उठीं और कहा गया कि वो किसी अतिविकसित प्रतिबंधित दवा का प्रयोग कर रहा है जिसे फिलहाल पकड़ना असंभव है. यहाँ एक और अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी का ज़िक्र करना बहुत ज़रूरी है. ये खिलाड़ी है अमेरिकन स्प्रिंटर क्रिस्चियन कोलेमन. क्रिस्चियन कोलेमन इस समय का विश्व चैम्पियन है, 100 मीटर रेस में उसका व्यक्तिगत रिकॉर्ड 9.76 सेकण्ड्स का है और 2017 से 2018 तक में वो वर्ल्ड रैंकिंग में पहले स्थान पर रहा. 2020 में उसे डोपिंग नियमों के उलंघन का दोषी पाया गया और उस पर दो वर्षों का प्रतिबन्ध लगा. बाद में इस प्रतिबन्ध को अठारह महीनों में बदल दिया गया लेकिन 2020 टोक्यो ओलिंपिक तक ये अवधि समाप्त न होने के कारण ये इस ओलिंपिक में हिस्सा नहीं ले सका. अगर वो डोपिंग नियमों के उल्लंघन का दोषी न पाया गया होता तो हो सकता है कि इस बार का ओलिंपिक विजेता वही बनता और कई खिलाड़ियों कि तरह उसे भी ‘क्लीन’ ही समझा जाता.
दरअसल डोपिंग का एक बहुत बड़ा सच ये है कि जब तक कोई खिलाड़ी डोप टेस्ट में फेल नहीं हो जाता उसे ‘क्लीन’ ही समझा जाता है. अन्तर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति और वाडा ये बहुत अच्छे तरह से जानते हैं कि डोपिंग के मामले में खिलाड़ी हमेशा उससे आगे रहे हैं. जैसे ही किसी शक्तिवर्धक दवा को पकड़ने की तकनीक का आविष्कार होता है, खिलाड़ी एक नयी और पहले से अधिक विकसित और अपरिचित दवा का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं. यही कारण है की पिछले कुछ ओलंपिक्स से वाडा को हर खेल के हज़ारों डोप सैम्पल्स को रक्षित करना पड़ता है जिससे भविष्य में और अधिक उन्नत तकनीक विकसित होने पर दोषी खिलाड़ियों को पकड़ा जा सके और उन्हें सज़ा दी जा सके. डोपिंग का खेल ओलंपिक्स कि शुरुआत के पहले से चलता चला आ रहा है और फिलहाल इसे रोकने का कोई ठोस समाधान न तो अन्तर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के पास है और न ही दुनिया की किसी एंटी डोपिंग एजेंसी के पास. अपने आने वाले लेखों में मैं इस समस्या की विस्तृत जानकारी दूंगा. अपने अगले लेख में मैं उसेन बोल्ट पर खुलकर चर्चा करूँगा. अगर आप मेरे लेख पसंद करते हैं तो इन्हें शेयर कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाएं और देशहित में मेरी इस छोटी सी कोशिश को सार्थक बनाने में मदद करें जिससे अपने देश के खिलाड़ियों को इन्साफ दिलाया जा सके.
धन्यवाद!
डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
लखनऊ
डॉक्टर साहब आपके लेखों से यह साबित होता है कि जिन ओलंपिक गेम्स को हम पवित्र मानते आए हैं वे वैसे कतई नहीं है। प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करके मेडल जीतने के जिस रिवाज का आप जिक्र कर रहे हैं उस लिहाज से तो हर ओलंपिक संदेह के दायरे में आ जाता है।
Comment karne ke liye shukriya. Ji bilkul, main yahi sach duniya ke saamne laane ki koshish kar raha hun.
Sir Well thought out!!!… This is prize-winning work.
Thanks.
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Thanks.
I will spread ur content sir nice article 😊🙏
Thanks.
Very well said…To win has to be the main focus of every sportsman..but using unfair means should be condemned..An eye opening article.
Thanks.
Thank you very much.
डोपिंग एक ऐसा दर्द है, जिस पर जितना मरहम लगाए जाए उतना ही दर्द बढ़ता जाता है। आप इस जख्म के स्थायी हल की दिशा में बेहतरीन काम कर रहे हैं डाॅक्टर साहब…
Bahut bahut dhanyawaad aapka. 🙏
Sir, Your deepest knowledge is very appreciable. I salute to your knowledge. Happy teaches day to you also because you also provide knowledge. Thanks Sir ji. 🙏🙏🌹🌹
Thank you so much Sir. 🙏
Great..mindblowing information of spotted sports.
Bahut bahut dhanyawaad aapka.
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Thank you Gaurav.
Saranjeet you are doing a good job and you try to bring such a truth in front of people. What many people don’t know about. Keep trying and one day success will take you to the top.
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Thank you for appreciating my work Tyagi.