अपने पिछले लेखों में मैं ‘मेंस 100 मीटर रेस’ में होने वाली डोपिंग अनियमितताओं और इनमें दोषी पाए गए खिलाड़ियों का उल्लेख करता आया हूँ. इस लेख में मैं इसी रेस के आज तक के सबसे बड़े खिलाड़ी ‘उसेन बोल्ट’ और उसके डोपिंग के दोषी होने की संभावनाओं का ज़िक्र करूँगा. हम सभी जानते हैं कि उसेन बोल्ट जमैका का स्प्रिंटर है और वो ओलिंपिक में आठ बार गोल्ड मेडल जीत चुका है. वो ओलिंपिक की मेंस 100 मीटर और 200 मीटर रेसों में लगातार तीन बार (2008, 2012 और 2016) जीतने वाला दुनिया का पहला स्प्रिंटर है. उसेन बोल्ट 2009 से 2015 तक (2011 छोड़कर) लगातार ग्यारह बार 100 मीटर, 200 मीटर और 4×100 मीटर रिले रेस का वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर है. उसके इस शानदार प्रदर्शन के कारण ही उसे ‘लाइटनिंग बोल्ट’ भी कहा जाता है.
उसेन बोल्ट के बारे में और बात करने से पहले हमें जमैका के खेल और जमैका के कुछ नामचीन खिलाड़ियों का डोपिंग इतिहास जानना बहुत ज़रूरी है. जमैका का सबसे पसंददीदा खेल एथलेटिक्स है और इसमें भी सबसे ख़ास प्रतिस्पर्धा स्प्रिन्टिंग है. दूसरे नंबर पर यहाँ क्रिकेट खेलना पसंद किया जाता है जो यहाँ ब्रिटेन से आया था. इसके अलावा यहाँ फुटबॉल, रग्बी, बास्केटबॉल, नेटबॉल और मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स भी पसंद किये जाते हैं. इन सभी खेलों में स्प्रिन्टिंग सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध होने की वजह से इस देश ने कई विश्व स्तर के स्प्रिंटर्स पैदा किये. हालाँकि एक काला सच ये भी है कि इनमें से कई स्प्रिंटर्स कभी न कभी डोपिंग में लिप्त पाए गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि आज तक के सबसे चर्चित डोपिंग मामले (1988 सिओल ओलिंपिक) का दोषी कनेडियन स्प्रिंटर बेन जॉनसन जमैका में पैदा हुआ था. इसी तरह 1992 बार्सिलोना ओलिंपिक का ‘मेंस 100 मीटर रेस’ का गोल्ड मेडल विजेता लिंफोर्ड क्रिस्टी, ब्रिटेन की तरफ से खेलता था लेकिन उसका भी जन्म जमैका में हुआ था और वो भी डोपिंग में फेल हुआ था, इनके अलावा जमैका में पैदा हुए और भी कई ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होनें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीती पर बाद में वो भी डोपिंग में लिप्त पाए गए. इनमें से कुछ नाम योहान ब्लेक, असाफा पॉवेल, रे स्टीवर्ट, मार्विन एंडरसन, नेस्टा कार्टर, पैट्रिक जर्रेट, स्टीव मुल्लिङ्गस, डोनोवन पॉवेल और क्रिस्टोफर विलियम्स हैं. इसके साथ-साथ कुछ ऐसे भी नाम थे जो डोपिंग में लिप्त होने के बावज़ूद एंटीडोपिंग एजेंसी को चकमा देने में कामयाब रहे और आज भी दुनिया उन्हें ‘क्लीन’ समझती है. ऐसा ही एक स्प्रिंटर जमैका में पैदा हुए लेकिन कनाडा से खेलने वाला डोनोवन बेली था जिसने 1996 अटलांटा ओलिंपिक की ‘मेंस 100 मीटर रेस’ में गोल्ड मैडल जीता था. डोनोवन बेली के गोल्ड मेडल जीतने के करीब 13 सालों बाद 2009 में ये खुलासा हुआ कि 1996 के दौरान वो कनाडा के मशहूर स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ एंथनी गेलिया के सम्पर्क में था जिसका नाम गोल्फ के वर्ल्ड नंबर एक खिलाडी टाइगर वुड्स के डोपिंग में लिप्त होने के बाद सुर्ख़ियों में आया. इनके अलावा कई ओलिंपिक मेडल विजेता और कई अन्य दूसरे खेलों के नामचीन खिलाड़ी भी डॉ एंथनी गेलिया के सम्पर्क में थे. 2000 सिडनी ओलिंपिक के दौरान डॉ एंथनी गेलिया को एक प्रतिबंधित दवा (स्टीमुलेंट) के साथ पकड़ा गया और 2009 में उसे एक और शक्तिवर्धक प्रतिबंधित दवा ‘ह्यूमन ग्रोथ हॉर्मोन’ की तस्करी करते हुए पकड़ा गया. जमैका में पैदा हुए खिलाड़ियों के साथ-साथ कुछ ऐसे कोच भी थे जो डोपिंग के लिए बहुत कुख्यात माने जाते थे. इनमें से एक नाम अमेरिका में रहने वाले ट्रेवर ग्रैहम का था जिसने कई नामचीन खिलाड़ियों जैसे जस्टिन गैटलिन, मरिओन जोह्न्स, टिम मोंट्गोमेरी और अंटोनिओ पेटीग्रेव को ट्रेन किया था. ये सभी बाद में डोपिंग के दोषी पाए गए. ट्रेवर ग्रैहम खेल के इतिहास में पहला कोच था जिस पर डोपिंग बैन लगाया गया.
अब अगर उसेन बोल्ट की बात करें तो 2008 बीजिंग ओलिंपिक से पहले, 2007 ओसाका वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स तक उसेन बोल्ट की ‘मेंस 100 मीटर रेस’ में बेस्ट टाइमिंग 10.03 सेकंड थी. 3 मई 2008 आते-आते ये सिर्फ़ 9.76 सेकंड की हो गयी. उसेन बोल्ट के प्रदर्शन में इतनी जल्दी और इतनी अधिक प्रगति होने पर 1996 अटलांटा ओलिंपिक के 200 और 400 मीटर रेस के गोल्ड मेडल विजेता और उस समय के वर्ल्ड चैंपियन माइकल जॉनसन ने डोपिंग का शक ज़ाहिर किया. इसके जवाब में उसेन बोल्ट के कोच ग्लेन मिल्स ने आने वाले दिनों में इससे बेहतर प्रदर्शन का दावा किया और सिर्फ़ कुछ ही दिनों बाद 31 मई 2008 को उसेन बोल्ट ने ये कारनामा कर दिखाया. उसने रीबॉक ग्रैंड प्रिक्स के दौरान अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए ये रेस मात्र 9.72 सेकण्ड्स में पूरी की और नया विश्व रिकॉर्ड बनाया. ये रेस उसेन बोल्ट की 100 मीटर की सिर्फ़ पांचवी सीनियर रेस थी. इतने कम अनुभव में इतनी प्रगति होने पर उस पर फिर से डोपिंग के आरोप लगे और एक बार फिर ग्लेन मिल्स ने बहुत जल्द इससे भी बेहतर प्रदर्शन की भविष्यवाणी कर दी. 2008 बीज़िंग ओलिंपिक के दौरान उसेन बोल्ट ने इस भविष्यवाणी को भी सच कर दिखाया. उसने अपने ही पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए ये रेस मात्र 9.69 सेकंड में पूरी की और एक नया विश्व रिकॉर्ड भी बना डाला. ये जमैका का अभी तक का ‘मेंस 100 मीटर रेस’ का पहला ओलिंपिक गोल्ड मेडल था. इस प्रदर्शन के बाद जब पूर्व वर्ल्ड चैंपियन कार्ल लेविस से उसेन बोल्ट के प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो उसने मात्र एक साल के अंतराल में उसेन बोल्ट की टाइमिंग 10.03 सेकंड से 9.69 सेकंड आने पर डोपिंग का संदेह प्रकट किया. कार्ल लेविस की बातों में तब सच्चाई लगने लगी जब 2013 में 2008 बीजिंग ओलिंपिक की ‘मेंस 4×100 मीटर रिले रेस’ में भाग लेने वाले उसेन बोल्ट के एक साथी नेस्टा कार्टर को डोप टेस्ट में पकड़ा गया और उनसे इस प्रतिस्पर्धा का गोल्ड मेडल वापिस ले लिया गया. इसी रेस में उसेन बोल्ट के बाकी के दो साथी माइकल फ्रेटर और असाफा पॉवेल थे, ये भी बाद में अलग-अलग प्रतिस्पधाओं में डोपिंग के दोषी पाए गए. 2012 लंदन ओलिंपिक की ‘मेंस 4×100 मीटर रिले रेस’ में उसेन बोल्ट के अलावा योहान ब्लेक, माइकल फ्रेटर और नेस्टा कार्टर ने भाग लिया था. 2016 रिओ ओलिंपिक में ‘मेंस 4×100 मीटर रिले रेस’ में उसेन बोल्ट के साथ दौड़ने वाले स्प्रिंटर असाफा पॉवेल, योहान ब्लेक और निकल अश्मीद थे जिनमें असाफा पॉवेल और योहान ब्लेक अलग-अलग समय पर डोपिंग के दोषी पाए गए.
अब मैं आपके सामने कुछ ऐसे तथ्य रखूँगा जिन्हें जानने के बाद आप अंदाज़ा लगा सकेंगे कि उसेन बोल्ट भी कई जमैकन स्प्रिंटर्स की तरह डोपिंग का दोषी है या नहीं.
- मात्र एक साल के अंतराल में उसेन बोल्ट की ‘मेंस 100 मीटर रेस’ की टाइमिंग 10.03 सेकंड से 9.69 सेकंड होना किसी चमत्कार से कम नहीं. आज तक दुनिया के किसी भी स्प्रिंटर के प्रदर्शन में इतने कम समय में इतना सुधार कभी नहीं हुआ. कुछ लोगों का मानना है कि उसेन बोल्ट के इस प्रदर्शन के पीछे उसकी कद-काठी (6 फ़ीट 5 इंच) की बहुत बड़ी भूमिका रही होगी जबकि वैज्ञानिकों की मानें तो इससे स्प्रिंटर की स्ट्राइड लेंथ (पैरों के बीच की दूरी) और स्ट्राइड स्पीड पर कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर ऐसा होता तो कई बास्केटबॉल खिलाड़ी उसेन बोल्ट से बेहतर स्प्रिंटर होते या यूँ कहें कि जिराफ़, चीते से तेज दौड़ने वाला जानवर होता. दरअसल लम्बाई बढ़ने के साथ शरीर का वज़न भी बढ़ता है जिसकी वज़ह से पैरों की मांसपेशियों पर ज़्यादा ज़ोर पड़ता है जो खिलाड़ी की गति बढ़ाने में अवरोध पैदा करता है. एक अच्छा स्प्रिंटर वही बन सकता है जो ज़मीन पर कम से कम समय में ज़्यादा से ज़यादा फ़ोर्स लगातार लगा सके. अपनी इसी क्षमता को बढ़ाने के लिए स्प्रिंटर शक्तिवर्धक दवाओं का प्रयोग करते हैं.
- कोच ग्लेन मिल्स उसेन बोल्ट के अलावा कई और स्प्रिंटर्स को भी ट्रेन कर चुका था. इस लिस्ट में किम कॉलिंस, ड्वेन चैम्बर्स और रे स्टीवर्ट जैसे नामचीन स्प्रिंटर शामिल थे जो सब कभी न कभी डोप टेस्ट में फेल हुए. एक ही कोच के ट्रेन किये हुए लगभग सभी स्प्रिंटर्स का डोप टेस्ट में फेल होना और उसेन बोल्ट का उन सब से कहीं बेहतर प्रदर्शन करना और डोप टेस्ट में बच निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं.
- उसेन बोल्ट के प्रदर्शन को लोग स्पोर्ट्स साइंस की सभी शाखाओं जैसे स्पोर्ट्स फिटनेस, स्पोर्ट्स न्युट्रिशन, स्पोर्ट्स साइकोलोजी, स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपी और बायोमैकेनिक्स में होने वाली उन्नति को भी मानते हैं. दरअसल जमैका कभी भी स्पोर्ट्स साइंस में इतना विकसित कभी नहीं रहा और अगर ऐसा होता तो जमैका में स्प्रिन्टिंग के अलावा दूसरे खेलों में भी तरक्की होनी चहिये थी. अगर कुछ अपवाद छोड़ दिया जाएं तो आज तक जमैका का वर्चस्व सिर्फ स्प्रिन्टिंग तक ही सीमित रहा है और वो भी खासतौर से सिर्फ़ मेंस स्प्रिन्टिंग में.
- उसेन बोल्ट के डोप टेस्ट में न पकड़े जाने की एक संभावना ये भी हो सकती है कि उसेन बोल्ट अधिक विकसित शक्तिवर्धक दवाओं का प्रयोग कर रहा था जिन्हें पकड़ना उस समय वर्ल्ड एंटी डोप एजेंसी (वाडा) के लिए संभव नहीं था. इस तरह के अभ्यास के प्रमाण 2008 से कुछ समय पहले एक बहुचर्चित डोप स्कैंडल, ‘बे एरिया लेबोरेटरी कोआपरेटिव’ या ‘बालको’ स्कैंडल से मिलते हैं. इसके करता-धर्ता, विक्टर कोंटे ने स्पोर्ट्स साइंटिस्ट्स के साथ मिलकर पाँच अलग-अलग अतिविकसित शक्तिवर्धक दवाओं का फार्मूला बनाया था. उसने 1996 से कई सालों तक अलग-अलग खेलों जैसे बेसबॉल, टेनिस, फुटबॉल के कई विश्वप्रसिद्ध खिलाड़ियों की डोपिंग में मदद की और उन्हें डोप टेस्ट में फेल होने से बचाया. ये वो दवाएं थीं जिन्हें पकड़ पाना किसी भी एंटीडोपिंग एजेंसी के लिए संभव नहीं था. एक साक्षात्कार के दौरान विक्टर कोंटे ने माना कि 2008 ओलिंपिक से पहले उसने जमैका को भी इन दवाओं की सप्लाई की थी.
- जमैका में इन दवाओं के प्रयोग का एक बहुत बड़ा कारण जमैका के लचर एंटी डोपिंग सिस्टम को भी माना जाता है जिसकी वजह से यहाँ डोपिंग टेस्ट्स की संख्या दूसरे देशों के मुकाबले बहुत रहती है. अगर सभी देशों में खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या के अनुपात से देखा जाये तो दुनिया में जमैका के खिलाड़ियों का डोपिंग लिस्ट में सबसे ऊपर स्थान रहा है. 2013 में जब वाडा ने जमैका के एंटी डोपिंग सिस्टम का एक असाधारण ऑडिट किया तो वहां के एंटी डोपिंग कमीशन के चेयरमैन सहित सभी अधिकारीयों ने एक साथ इस्तीफ़ा दे दिया. बाद में खुलासा हुआ कि 2012 ओलिंपिक से पाँच महीने पहले जमैका में सिर्फ़ एक ‘आऊट ऑफ़ कम्पटीशन’ टेस्ट हुआ जो दोषियों को पकड़ने की बहुत अहम् प्रक्रिया थी. इस कारण कई खिलाड़ी ओलिंपिक के दौरान डोप टेस्ट को चकमा देने में कामयाब हो गए थे और इन खिलाड़ियों में उसेन बोल्ट भी शामिल था.
- उसेन बोल्ट के प्रदर्शन को जमैका के पुराने प्रतिद्वंदी अमेरिका से हर हाल में जीतने की प्रतिस्पर्धा का हिस्सा भी माना जाता है जिसके चलते उसेन बोल्ट को जिताने के लिए हर संभव उचित-अनुचित कोशिश की गयी. कहा ये भी जाता है कि उसेन बोल्ट के सर पर जमैका के पूर्व प्रधान मंत्री जेम्स पैटर्सन का भी हाथ था जिसके चलते जब कभी भी उसेन बोल्ट पर डोपिंग के आरोप लगे उसे पूरा राजनैतिक समर्थन मिलता रहा.
- इसके अलावा बड़ी-बड़ी कंपनियां जिन्हें उसेन बोल्ट आज भी एंडोर्स करता है, कभी नहीं चाहती थीं कि उसेन बोल्ट कभी भी डोप टेस्ट में फेल हो, इसके लिए वो करोड़ों खर्च करने में भी ग़ुरेज़ नहीं करतीं. वाडा भी कोई दूध का धुला नहीं रहा है, इस पर भी घूसखोरी, धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं जिसके चलते कई नामचीन खिलाड़ी डोप टेस्ट की परवाह किये बिना मेडल्स जीतते रहे. एक बात ये भी है कि कई नामचीन खिलाड़ियों को डोपिंग का दोषी होने के बावज़ूद वाडा चाह कर भी उन्हें नहीं पकड़ती या फिर राजनैतिक अथवा अन्य दबावों के कारण नहीं पकड़ पाती. ऐसा होने पर खेलों का अरबों-खरबों का ‘खेल’ बर्बाद हो जायेगा.
इन सभी तथ्यों को देखते हुए मुझे आशंका है कि उसेन बोल्ट ने भी कई खिलाड़ियों की तरह एंटीडोपिंग एजेंसीज की ख़ामियों का फायदा उठाया होगा और डोप टेस्ट्स को आसानी से पास करता चला गया. कुछ समय पहले मैंने वाडा से कुछ खास तरह के टेस्ट्स कराने की मांग की थी, हालाँकि उनका अभी तक तो कोई जवाब नहीं आया है लेकिन अगर उन टेस्ट्स को कराया जाये तो कई सालों बाद भी डोपिंग के दोषियों को पकड़ने में सफलता मिल सकती है.
इस विवरण का मुख्य कारण आपको डोपिंग प्रक्रिया में होने वाली अनियमितताओं की जानकारी देना था. न जाने ऐसे कितने डॉक्टर्स और कोचेस रहे होंगे जिन्होंने अब तक न जाने कितने खिलाड़ियों की अनुचित मदद कर उन्हें डोप टेस्ट से बचाते हुए मेडल जीतने में सफल बनाया होगा. इसका ख़ामियाज़ा आज भी हमारे देश के खिलाड़िओं को भुगतना पड़ रहा है, न जाने कितने मेडल हमसे छीने गए होंगे जिनके हम सच्चे हकदार थे और न जाने ऐसा कब तक चलता रहेगा. अपने अगले लेख में मैं इसी तरह की रोचक जानकारी देने की कोशिश करूँगा.अगर आप मेरे लेख पसंद करते हैं तो इन्हें शेयर कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाएं और देशहित में मेरी इस छोटी सी कोशिश को सार्थक बनाने में मदद करें जिससे अपने देश के खिलाड़ियों को इन्साफ दिलाया जा सके.
धन्यवाद!
डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
लखनऊ
Great study
Thanks.
Thank you.
I will share this article sir ty for providing information to us
अविश्वसनीय जानकारी।इतने फ्रॉड के साथ ये खेल होते हैं ये होना ये साबित करता है कि कहीं न कहीं वाडा भी पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त है।
Sahi kaha bhai.
👍
Sure arpit.
देश हित मे अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश को इस मुद्दे को उठाने की मजबूत पहल केंद्रीय सरकार को हर हाल मे करनी चाहिये.
.सारा विश्व आज हर मुद्दे पर बहुत आशा भरी नज़र से हमारे देश को देखता है.
टोकयी ओलंपिक मे हमारे खिलाडियों की सुंदर प्रदर्शन को हमने वा सारी दुनिया ने देखा है.
Doping tests में कुच खास tests तक्नीकि रूप से जरूर जोडे जाने चाहिये ताकि हमारे खिलड़ियोँ को भी उन्की इमानदारी और मेहनत का सही प्रतिफल मिल सके.
आशा करती हूँ कि हमारी सरकार इस पर गम्भीरता से कदम उठायगी.
Thanks for sharing eyes and mind opening sport information.
Great going….keep going and sharing.
Thank you for your kind words Dr Alka. 🙏
डॉक्टर साहब इस लेख के जरिए आपने एक बड़े गड़बड़झाले की तरफ इशारा करने वाले कई जायज सवाल उठाए हैं। अब यह सवाल करने को दिल करता है कि जिन खिलाड़ियों को महान एथलीट के रूप में पेश किया गया क्या वे वाकई महान थेह यह सवाल हमें बहुत पीछे जाकर जांच पड़ताल करने का दबाव डालने को विवश करता है। इससे वाडा की लाचारी और काहिली भी जाहिर होती है। सबसे दुखद बात यह है कि इससे खेल की पवित्रता पर करारा आघात हुआ है और हर मेडल जीतने वाला एथलीट संदेह के घेरे में आ गया है। खेल की पवित्रता बनाए रखने के लिए अब यह बहुत जरूरी है कि डोपिंग के कैंसर को जड़ से खत्म किया जाए।
धन्यवाद भाई। आपके कमेंट्स इस लड़ाईयों लड़नेवाले शक्ति देते हैं मुझे।
Well Researched Article Sir!!
Great Reading Experience.
Wishing you all the best!
Thank you Dr Piyush.
An eye opener article… that roots of doping go much deeper than thought..
Thanks
Sir Bahut hi shaandar article hai full in depth analysis hai sir …….pls keep enlightening us……thx🙏🙏
Thanks for your comments.