पिछले 20-25 सालों में फिटनेस शब्द का जितना प्रयोग हमारे देश में हुआ शायद ही किसी देश में हुआ होगा. तमाम टीवी चैनल्स पर आये दिन इसकी चर्चा होती है, अख़बारों और मैगज़ीन्स में फिटनेस और लाइफस्टाइल से जुड़े डेली और वीकली कॉलम्स छप रहे हैं. इसके अलावा इंटरनेट पर हज़ारों-लाखों वेबसाइट्स और यू ट्यूब चैनल्स हैं जहाँ हेल्थ और फिटनेस के गुर दिए जा रहे हैं. इन सालों में जैसे-जैसे फिटनेस पर ज़ोर दिया जाने लगा वैसे-वैसे इस इंडस्ट्री से जुड़े कई व्यवसाय भी खूब फलने-फूलने लगे. फिर चाहे वो जिम्स या हेल्थ सेंटर्स की बात हो, फिटनेस इक्विपमेंट की बात हो या फिर फ़ूड सप्लीमेंट्स की बात हो, आज ये सब फिटनेस इंडस्ट्री से जुड़ी अलग-अलग इंडस्ट्रीज बन चुकी हैं और इसका सालाना व्यापार करोड़ों-अरबों का हो चुका है. पिछले कुछ सालों में हमारे देश में जिम्स और हेल्थ सेंटर्स की तो बाढ़ सी आ गयी है, तमाम बड़े-बड़े ब्रांड्स की अंतर्राष्ट्रीय हेल्थ सेंटर चेन्स हमारे देश में दाखिल हो चुकी हैं, आये दिन नए-नए फिटनेस इक्विपमेंट के विज्ञापन दिखा कर आपकी फिटनेस को दुरुस्त करने के दावे किये जा रहे हैं और न जाने कितने तरह के फ़ूड सप्लीमेंट्स बनाने वाली कम्पनियाँ भी बड़े-बड़े दावों के साथ बाजार में उतर चुकी हैं. यहाँ एक बहुत बड़ी समस्या ये है कि सरकारों का इन सब पर विशेष ध्यान न होने के कारण आज तक फिटनेस इंडस्ट्री की कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं बन सकी है जिसकी वजह से इस इंडस्ट्री से जुड़े किसी भी व्यवसाय के कोई निर्धारित मानक नहीं होने के कारण इसका ख़ामियाज़ा इस इंडस्ट्री के एन्ड यूजर यानि इन हेल्थ सेंटर्स में एक्सरसाइज करने वालों या फिटनेस इक्विपमेंट और फ़ूड सप्लीमेंट्स के ग्राहकों को उठाना पड़ रहा है. इन सबके बीच फिटनेस के सही मायने कहीं खो से गए हैं, आखिर हम वही खाते हैं जो हमें परोसा जाता है. सही मायने में बोला जाये तो फिटनेस महज एक ‘व्यापार’ बनकर रह गया है. आप कैसे दिखाई देते हैं, बस यही फिटनेस का मानक बन गया है जिसे हासिल करने की दौड़ में हम शॉर्टकट्स तलाशने लगते हैं जिसका फ़ायदा इस व्यवसाय से जुड़े लोग उठाते हैं और आप अपनी हेल्थ और पैसे दोनों का नुक्सान कर बैठते हैं. ये एक बहुत बड़ा कारण है कि पिछले 20-25 सालों में इस इंडस्ट्री का इतना प्रचार-प्रसार होने के बावज़ूद हमारे देश में लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याओं और इनके मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. छोटे-बड़े शहरों में करोड़ों की लागत से एक से बढ़ कर एक तमाम सुविधाओं वाले हेल्थ सेंटर्स तो खुल रहे हैं पर वहां दी जाने वाली ट्रेनिंग राम भरोसे चल रही है. जिम ट्रेनिंग के कोई निश्चित और निर्धारित मानक न होने कि वजह से वहां मौजूद हर ट्रेनर कोई वैज्ञानिक आधार न होने की वजह से एक दूसरे से अलग ज्ञान दे रहा होता है. ज़्यादातर लोग ट्रेनर की ट्रेनिंग एजुकेशन के बारे पूछताछ किये बिना उसके बड़े-बड़े डोलों और ‘6’ पैक्स से प्रभावित होकर उसे अपने आपको सौंप देते हैं, फिर चाहे उसने अपना शरीर स्टेरॉइड्स या दूसरी ख़तरनाक दवाओं की मदद से ही क्यों न बनाया हो. वैसे तो ट्रेनिंग के दौरान एक्सरसाइज करने की सही जानकारी न होने के कारण छोटी-बड़ी इंजरीज होना एक आम समस्या है लेकिन इससे ज़्यादा बुरा तो तब होता है जब पहले से किसी हेल्थ समस्या जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या किसी अन्य समस्या से जूझ रहे पेशेंट्स को इन्ही कारणों से अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता है. इसके विपरीत अगर ट्रेनर को इन सब बीमारिओं और ऐसे पेशेंट्स को साइंटिफिक तरीके से एक्सरसाइज करने की जानकारी हो तो इन बीमारियों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. दुर्भाग्यवश ऐसा बहुत कम होता है और ऐसे पेशेंट की हेल्थ और फिटनेस बेहतर होने की बजाय और बदतर हो जाती है. ऐसा कई बार देखा गया है कि ऐसे पेशेंट्स की जिम में एक्सरसाइज करते समय दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है. दरअसल ज़्यादातर लोगों का हेल्थ सेंटर्स ज्वाइन करने का मुख्य उद्देश्य अपना वजन कम करना, अपनी मांस-पेशियों को विकसित करना या फिर अपनी फिटनेस को पहले से बेहतर बनाना होता है. फिटनेस ट्रेनिंग से जुड़ी एक बहुत बड़ी सच्चाई ये है कि इसके लिए आप कहीं से भी शुरुआत करें, मॉर्निंग वाक पर जाएँ, साइकिलिंग करें, योग करें, जिम ज्वाइन करें या कोई स्पोर्ट्स खेलना शुरू कर दें, शुरू के 6 से 8 हफ्ते तक आपको थोड़ा बहुत फायदा ज़रूर होता है. आपके शरीर से पानी निकलने के कारण 5-6 किलो तक का वजन बड़ी आसानी से कम हो जाता है, मांस-पेशियाँ मजबूत होने लगती हैं, स्टेमिना में सुधार होता है, फ्लेक्सिबिलिटी बेहतर होती है, नींद पहले की तुलना में गहरी होने लगती है और शरीर के बाकी के अंग भी बेहतर काम करने लगते हैं. इन सब से आप तनावमुक्त महसूस करने लगते हैं या यूँ कहें कि ‘फील गुड’ फैक्टर काम करने लगता है.
शुरूआती दिनों में मिलने वाले इन फ़ायदों के लिए किसी एक्सपर्ट या ट्रेनर की ज़रुरत नहीं होती. आप किसी ट्रेनर की देखरेख में एक्सरसाइज करें या खुद ही कुछ भी करना शुरू कर दें इतना फ़ायदा तो आपको ज़रूर मिलता है. असली परीक्षा तो इसके बाद शुरू होती है जब शुरूआती दिनों में मिलने वाले इन फ़ायदों के बाद मेहनत करने पर भी पहले जैसी रफ़्तार से फायदे मिलना बंद हो जाते हैं या बिलकुल नहीं मिलते. ये वो समय होता है जहाँ आपकी फिटनेस ट्रेनिंग पूरी तरह से साइंटिफिक न होने पर और आपकी डाइट में सभी पौष्टिक तत्वों का का उचित संतुलन नहीं होने पर आपको फिटनेस से जुड़े फायदे मिलना बंद हो जाते हैं. ऐसी स्थिति आने पर आप निराश हो कर या तो एक्सरसाइज करना छोड़ देते हैं और या फिर ज़रुरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करने लगते हैं. जिम या हेल्थ सेंटर करने के कुछ ही दिनों में एक्सरसाइज छोड़ देना एक बहुत आम प्रक्रिया है. आपको जान कर हैरानी होगी कि करीब 80 से 90% लोग जिम ज्वाइन करने के सिर्फ़ एक-दो महीनों में ही एक्सरसाइज करना छोड़ देते हैं. शुरूआती दिनों में मिलने वाले फ़ायदों के बाद जब मेहनत करने पर भी उन्हें आगे इससे कोई लाभ नहीं मिलता तो वो निराश और प्रेरणाहीन होकर एक्सरसाइज से दूर हो जाते हैं. दुनिया भर में चलने वाले तमाम जिम और हेल्थ सेंटर्स के मालिक और मैनेजर्स इसे भली-भांति समझते हैं. यहीं कारण है कि इन जिम और हेल्थ सेंटर्स की मासिक फीस और वार्षिक फीस में बहुत बड़ा अंतर होता है. आप आसानी से इस झांसे में आकर अर्धवार्षिक या वार्षिक फीस दे बैठते हैं जिसका पूरा लाभ जिम और हेल्थ सेंटर्स के मालिक उठाते हैं. अब यहाँ ये भी जानना ज़रूरी है कि एक्सरसाइज छोड़ने पर इससे मिलने वाले बदलाव फिर से पहले जैसे हो जाते हैं और कभी-कभी तो स्थिति पहले से भी बदतर हो जाती है. अब अगर वो एक्सरसाइज करना जारी रखते हैं तो वो घंटों जिम में बिताने लगते हैं. ज़रुरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करने से आपके शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे आपको हर समय थकान, सर दर्द, मांस-पेशियों में तनाव, जोड़ों में दर्द, बार-बार इंजरी होना, भूख न लगना, नींद न आना, चिड़चिड़ापन और एक्सरसाइज में मन न लगना जैसे लक्षण हो सकते हैं. अगर इस तरह की ट्रेनिंग को लम्बे अर्से तक किया जाता है तो इससे आपके हार्ट, ब्रेन, लिवर और किडनी जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर बहुत बुरा असर पड़ता है. इसके साथ-साथ मेहनत करने के बावज़ूद मनचाहे नतीजे न मिलने पर आप एक और गलती कर बैठते हैं. अगर आप किसी ऐसे ट्रेनर की देखरेख में एक्सरसाइज कर रहे होते हैं जिसके पास इस विषय से जुड़ी उचित योग्यता नहीं होती जोकि एक बहुत आम बात है तो आप कोई जांच-पड़ताल किये बिना उसके द्वारा सुझाये गए या उसके द्वारा दिए गए फ़ूड सप्लीमेंट्स का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं.
फिटनेस इंडस्ट्री के साथ फ़ूड सप्लीमेंट्स का व्यवसाय भी बहुत अनियमितताओं से भरा पड़ा है. इस पर भी कोई ख़ास रोकथाम न होने के कारण तमाम तरह के मिलावटी और बड़े-बड़े ब्रांड के सप्लीमेंट्स की हूबहू नक़ल कर कई फ़ूड सप्लीमेंट्स बनाने वाली कम्पनियाँ बाजार में कूद पड़ीं हैं. अब समस्या ये है कि इनमें से जो असली फ़ूड सप्लीमेंट्स हैं उनमें से अगर कुछ सप्लीमेंट्स को हटा दिए जाये तो बड़े-बड़े दावे करने वाले करीब 95% सप्लीमेंट्स कोई काम ही नहीं करते. इनका सिर्फ़ एक प्लॅसिबो इफ़ेक्ट (विश्वास के आधार पर इलाज करने की चिकित्सा पद्धति) होता है जिसके लिए आप से मोटी रकम कमाई जाती है. वैसे तो अलग-अलग उद्देश्य के लिए लिये जाने वाले फ़ूड सप्लीमेंट्स की बहुत लम्बी लिस्ट है, लेकिन इनमें ज़्यादातर इस्तेमाल किये जाने वाले सप्लीमेंट्स वजन कम करने (फैट बर्नर्स) और मांस-पेशियों को बड़ा करने (प्रोटीन) के लिए लिए जाते हैं. वज़न कम करने वाले सप्लीमेंट्स में अक्सर ऐसी हर्ब्स या दवाएं (डाईयुरेटिक्स) मिलायी जाती हैं जो हमारे शरीर से बहुत अधिक मात्रा में पानी को बाहर निकल देती हैं. इससे हमारा रक्त गाढ़ा हो जाता है, रक्त की ऑक्सीजन प्रवाह करने की क्षमता कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर में बदलाव आने से हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, पैरालिसिस, किडनी फेल होने और जोड़ों में दर्द होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसा होने पर पानी के साथ-साथ शरीर से ज़रूरी मिनरल्स जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम और पोटेशियम भी बाहर निकल जाते हैं जो हमारे शरीर की प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने में बहुत महत्यपूर्ण योगदान देते हैं. डाईयुरेटिक्स की तरह इन सप्लीमेंट्स में कुछ हर्ब्स या दवाएं (लेक्सेटिवेस) भी मिलाई जाती हैं. ये हमारे शरीर में जमा इंटेस्टिनल बल्क या मल को बहार निकालने का काम करती हैं. हमारे शरीर में करीब 3-4 किलो तक का मल जमा रहता है जिसमें महत्वपूर्ण बैक्टीरिया होते है जो हमें कई तरह की बीमारियों और संक्रमण से बचाते हैं. इसके अलावा फ़ूड सप्लीमेंट्स में भूख न लगने के लिए स्टिमुलैंट्स भी मिलाये जाते हैं जो किसी भी तरह से हमारे शरीर के लिए लाभदायक नहीं होते. अगर इन्हे लम्बे अर्से तक लिया जाये तो इससे भी हमारे महत्वपूर्ण अंगो को बहुत नुक्सान होता है जो आकस्मिक हार्ट फेल या मानसिक रोगों का कारण बन सकता है.
दरअसल वज़न कम होना और वज़न से ‘फैट’ का कम होना दो अलग-अलग प्रक्रियाएं होती हैं. सही मायने में शरीर से फैट का कम होना ही उचित प्रक्रिया है जिसका ज़िक्र जिम ट्रेनर्स और फ़ूड सप्लीमेंट बनाने वाली कम्पनियाँ कभी नहीं करतीं और आपको इसकी जानकारी न होने के कारण आपका भरपूर फायदा उठाती हैं. दुःख की बात तो ये है कि इससे आपकी मेहनत से कमाई पूँजी के साथ-साथ आपकी सेहत के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है. अब इसे एक और तर्क से समझा जा सकता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मौजूदा हालात में हर उम्र के लोगों में मोटापा एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है. ये तमाम गंभीर बीमारिओं की जड़ है और अगर फ़ूड सप्लीमेंट्स, फैट बर्नर्स या किसी हर्बल चाय पीने से इसे नियंत्रित जा सकता होता तो मोटापा दुनिया से कबका ख़त्म हो चुका होता. खैर, इसी तरह मांस-पेशियों को बड़ा करने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट्स का भी धंधा बड़े जोरों से चल रहा है. अगर कुछ अच्छे ब्रांड्स को छोड़ दिया जाये तो ज़्यादातर प्रोटीन सप्लीमेंट्स या तो बहुत निम्न स्तर के होते हैं या उनमें जल्दी परिणाम लाने के लिए स्टेरॉयड मिला दिए जाते हैं. स्टेरॉइड्स से होने वाले साइड इफेक्ट्स का ज़िक्र मैं अपने कई लेखों में पहले ही कर चुका हूँ. इन सप्लीमेंट्स की कोई लैब टेस्टिंग न होने के कारण इन पर रोक लगाना आसान नहीं है.
अब अगर फिटनेस की सही परिभाषा को समझा जाये तो फिटनेस का मतलब इसके ख़ास कम्पोनेंट्स जैसे मस्कुलर स्ट्रेंथ, मस्कुलर एंडुरेंस, कार्डियोवैस्कुलर एंडुरेंस और फ्लेक्सिबिलिटी का उचित संतुलन होना होता है. ये संतुलन बनाना बहुत साइंटिफिक और जटिल प्रक्रिया होती है. अब जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हम सभी की शारीरिक सरंचना और फिटनेस के इन सभी कम्पोनेंट्स का स्तर और हमारी फिटनेस की ज़रूरतें एक दूसरे से बिलकुल भिन्न होती हैं. इसलिए किसी का भी साइंटिफिक ट्रेनिंग और संतुलित डाइट प्लान बनाने से पहले हमें इन सभी भिन्नताओं को जानना बहुत ज़रूरी होता है. इसके लिए हमें एक्सरसाइज की शरुआत करने से पहले कुछ ख़ास तरह के फिटनेस टेस्ट्स ज़रूर कराने चाहिए. ये करीब 40 से 50 तरह के अलग-अलग टेस्ट्स होते हैं. ये टेस्ट्स किसी पैथोलॉजी लैब में नहीं होते. इनकी सही जानकारी सिर्फ एक योग्य ट्रेनर को ही होती है. इन टेस्ट्स से एक्सरसाइज करने वाले की खूबियों और कमज़ोरियों का पता चलता है. इस प्रक्रिया से एक सटीक और व्यक्तिगत ट्रेनिंग और डाइट प्लान बनाने में मदद मिलती है.
इन टेस्ट्स से पता चलता है कि आपको एक हफ्ते में कौन सी एक्सरसाइज यानि कि वज़न उठाने वाली (स्ट्रेंथ ट्रेनिंग), एंडुरेंस बढ़ाने वाली (कार्डियोवैस्कुलर ट्रेनिंग) और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने वाली (योग या स्ट्रेचिंग ट्रेनिंग) कितने दिन करनी चाहिए, एक्सरसाइजेज का सही चयन कैसे होना चाहिए, उनकी क्या इंटेंसिटी होनी चाहिए और उन्हें कितनी देर तक करना चाहिए. इन टेस्ट्स से ये भी पता चलता है कि आपको दिन भर में अपनी डाइट में कितनी कैलोरीज लेनी चाहिए, उसमें कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन्स, फैट और पानी की कितनी मात्रा होनी चाहिए और ज़रुरत पड़ने पर आपको कौन-कौन से विटामिन्स और मिनरल्स का प्रयोग करना चाहिए. इस तरह से बने फिटनेस और डाइट प्लान का पालन करने के कुछ दिनों के बाद जब आप एक गोल प्राप्त कर लेते हैं तो इन्ही टेस्ट्स को दोबारा कर आपके फिटनेस और डाइट प्लान में ज़रूरी बदलाव किये जाते हैं. इस प्रक्रिया से आपकी फिटनेस में बिना किसी इंजरी के और किसी भी तरह की खतरनाक दवाओं का सेवन किये निरंतर सुधार होता रहता है. दुर्भाग्यवश इस तरह की प्रक्रिया बहुत ही कम जिम्स या हेल्थ सेंटर्स में देखने को मिलती है जिसकी वजह से जिम की मोटी फीस और अनावश्यक फ़ूड सप्लीमेंट्स पर पैसा खर्च करने के बावज़ूद आपको नुक्सान उठाना पड़ता है.
फ़ूड सप्लीमेंट्स की तरह फिटनेस इक्विपमेंट भी फिटनेस इंडस्ट्री का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसमें भी सुधारों की ज़रुरत है. ज़्यादातर केसेस में फिटनेस इक्विपमेंट बनाने वाली छोटी-बड़ी कंपनियां या तो विदेशी इक्विपमेंट की नक़ल करती हैं या फिर इन्हें मनमाने तरीके से बनाकर बाजार में उतार देती हैं. इन कंपनियों में अक्सर ऐसे लोग कार्यरत होते हैं जिन्हे न तो ह्यूमन बायोमैकेनिक्स के बारे में जानकारी होती है और न ही उनका फिटनेस से कोई लेना-देना होता है और एक बार फिर इसका ख़ामियाज़ा एन्ड यूजर यानि ऐसे इक्विपमेंट पर एक्सरसाइज करने वालों को भरना पड़ता है. ऐसे इक्विपमेंट की वजह से उनको एक्सरसाइज करने के उचित परिणाम नहीं मिलते और उनमें शारीरिक संतुलन बिगड़ने और इंजरीज होने का खतरा बढ़ जाता है.
चलिए अब फिटनेस इंडस्ट्री से जुड़े एक और व्यवसाय पर भी नज़र डाल लेते हैं. ये व्यवसाय है देश-विदेश में चलने वाली फिटनेस अकैडमीस का. पिछले कुछ सालों में हर छोटे-बड़े शहरों में इस तरह की तमाम अकैडमीस खुल गईं हैं जो मात्र तीन महीनों में और कभी-कभी तो सिर्फ़ छै हफ़्तों में नौजवानों को फिटनेस एक्सपर्ट बनाने का दावा करती हैं. इनमें से ज्यादातर अकैडमीस में हफ्ते के सिर्फ़ एक या दो दिन क्लासेज लगती हैं और कुछ अकैडमीस तो इसकी ऑनलाइन सेवा दे रही हैं. फिटनेस एक्सपर्ट बनना इतना आसान नहीं होता. इसके लिए एक ट्रेनर को एक्सरसाइजेज को सही तरीके से करने के तरीके (एक्सेक्यूशन) और फिटनेस ट्रेनिंग के तमाम सिद्धांतों के साथ-साथ मानव शरीर प्रणाली (ह्यूमन बॉडी सिस्टम) की अच्छी जानकारी भी होनी चाहिए. इसके लिए उसे मानव शरीर रचना (ह्यूमन एनाटॉमी), मानव शरीर क्रिया विज्ञान (ह्यूमन फिजियोलॉजी), मानव जैव यांत्रिकी (ह्यूमन बायोमैकेनिक्स), पेशी गति विज्ञान (किनिसीऑलजी) के साथ-साथ बेसिक न्यूट्रिशन की जानकारी भी होनी चाहिए. एक ट्रेनर को लाइफस्टाइल से जुड़ी ख़ास बीमारियों जैसे हाई व लो ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, आर्थराइटिस, मोटापा और डिप्रेशन जैसी बीमारियों की कम से कम इतनी जानकारी ज़रूर होनी चाहिए जिससे कि ऐसे पेशेंट्स का उनकी शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाया जा सके. इन बातों को जानकर आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इतने कम समय में इतने मत्वपूर्ण विषय पर जानकारी हासिल करना नामुमकिन है अतः एक सर्टिफाइड फिटनेस ट्रेनर और बिना सर्टिफिकेट वाले ट्रेनर की जानकारी में कोई ख़ास अंतर नहीं होता जबकि इसके लिए उनसे चालीस हजार से एक लाख रूपए तक वसूल लिए जाते हैं. हालाँकि कुछ ऐसे सरकारी संस्थान भी हैं जहाँ बहुत पहले से शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम चल रहे हैं लेकिन उनमें भी इतनी विस्तृत जानकारी नहीं दी जाती. ऐसे पाठ्यक्रमों में ज़्यादातर खेलों से जुड़ी शारीरिक शिक्षा की जानकारी दी जाती है. जिम और हेल्थ सेंटर्स के लिए इनमें भी उन्नयन (अपग्रेडेशन) और बदलाव की ज़रुरत है जिससे सभी की फिटनेस में सुधार किया जा सके और ‘फिट इंडिया’ मूवमेंट को सही दिशा दी जा सके.
अंत में मैं बस यही कहूंगा कि अपने फिटनेस गोल्स को प्राप्त करने के लिए कभी जल्दबाज़ी न करें. जल्द से जल्द अपने शरीर के अकार में बदलाव के पीछे न भागें. छै हफ़्तों में या तीन महीनों में होने वाले चमत्कारिक बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन के झांसे में न फंसें. फिटनेस के सही मायने समझें. अगर आप वैज्ञानिक तरीके से फिटनेस प्रणाली का पालन करते हैं तो शरीर के आकार में सकारात्मक बदलाव आना निश्चित है. ये एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन इसे पाना असंभव भी नहीं है. इसे पाने के लिए अपने गोल्स को छोटे-छोटे चरणों में पूरा करने की कोशिश करें. गलतियों से सीखें और उन्हें दोबारा न करें. एक महीने में दो किलो से ज्यादा वज़न (फैट) कम होना और एक किलो से ज्यादा लीन मास (मांस-पेशियाँ) का बढ़ना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है. नियमित रूप से एक्सरसाइज करें, संतुलित आहार लें, एक दिन में कम से कम दो से ढाई लीटर तक पानी पियें, सिगरेट, तम्बाकू, शराब से दूर रहें, रात की 7 से 8 घंटों की पूरी नींद लें और एक सकारात्मक सोच रखें. प्राकृतिक और सुरक्षित रहते हुए अपने फिटनेस गोल को प्राप्त करने का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है.
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धन्यवाद!
डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
लखनऊ
AWESOME ANALYSIS !
SHAME on the DOPESTERS !
कमाल की महत्वपूर्ण जानकारी…
Very informative based on scientific approach.Great job.
It should be read and shared to common people specially generation of middle class .
Thank you Dr Alka.
Very informative and factual description presented in a simple way..an eye opener really 👌
Thank you so much big brother. 🙏
हमेशा की तरह बहुत गहरी रिसर्च और अनुभव के आधार पर लिखा गया एक और सुपर डुपर आर्टिकल। वास्तव में दुनिया में हेल्थ और फिटनेस की आड़ में मल्टी billion-dollar का फर्जी बिजनेस किया जा रहा है, जिसका बहुत बड़ा खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो ऐसे कारोबारियों के झांसे में आ जाते हैं। निश्चित रूप से तंदुरुस्ती हजार नेमत है लेकिन मौजूदा वक्त में इसे हासिल करने के लिए एक साइंटिफिक अप्रोच बहुत जरूरी है। डॉक्टर साहब आपने जितनी गहराई और साफगोई से इस आर्टिकल में अपनी बात रखी रखी है मुझे लगता है कि सरकारों और सेहत से संबंधित उनके विभागों को इस पर चिंतन करने की जरूरत है। डॉक्टर साहब आपका बहुत बहुत धन्यवाद हमारे सामने एक और अनमोल आर्टिकल रखने के लिए।
Thank you brother. 🤗🙏
ज़बरदस्त पोस्ट । बेहद बारीक जानकारी जो केवल आप ही दे सकते हैं।ताज्जुब है कि इतना कुछ हो रहा है कि एक आम आदमी को भी नज़र आ जाये फिर भी सरकारों को कुछ नही दिख रहा।और युवा तो इस देश के बिल्कुल दिशाहीन हो चुके हैं जो अपना फायदा नुकसान नही समझ पा रहे हैं।ये बहुत बड़ी समस्या है जो आगे विकराल रूप लेगी।
Thank you bhai. 🤗
सर जी, आपकी लिखी हुई बाते आज के परिवेश मे बिल्कुल सत्य हैं | हम आज जल्दी के चक्कर मे भविष्य को दाँव पर लगाने का रिस्क लेते हैं | आपको धन्यवाद इतने सुंदर एवं स्पष्ट लेख के लिये |🙏🙏
Thank you so much Sir. आप सभी के कमेंट्स मेरी ताक़त हैं।
GREAT INFORMATION sir !
Further we should first take the initiative and get our tests done and follow a scientific program by who else , but you sir 🙏
Thanks Saurabh.